साहित्य समाज का दर्पण होता है। स्वतंत्र भारत के संविधान में प्रेस लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ है। पर्यावरण, जीवरक्षा और नशामुक्त जीवन जीने वाले पवित्र बिश्नोई धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार समय की महत्ती आवश्यकता है। वर्तमान के भौतिक युग में अर्थतंत्र को मजबूत बनाने में लगी अंधी दौड़ में पत्र पत्रिकाओं और इलेक्ट्रोनिक साधनों का महत्व बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे समय में बिश्नोई समाज में अधिक से अधिक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होना लाभकारी है। भावी पीढ़ी में धर्म की प्रेरणा देने, धर्म प्रचार को जारी रखने, धार्मिक कार्यों को प्रोत्साहन देने, सामाजिक बन्धुओं को प्रेरित करने का सशक्त साधन पत्रिका एवं साहित्य ही है।
बिश्नोई सन्देश हिन्दी मासिक का इतिहास
श्री रामरतन सीगड़ बिश्नोई के घर से और अपनी पूज्य माताश्री रमादेवी कालीराणा और पिताश्री हरचन्दरामजी सीगड़ से धार्मिक संस्कार प्राप्त हुए थे। आपने अपने माताश्री से जाम्भोजी के भजन,आरती,साखी,सबदवाणी का नित्यपाठ करना सीखा। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही अपनी ज्ञानराशि को बढ़ाते गये। स्नातकोतर परीक्षा उतीर्ण करने तक अच्छे संगीतज्ञ बनने के साथ ही अच्छी लेखन क्षमता प्राप्त कर ली थी।
साहित्य लेखन के साथ ही कवित्व के गुण आप में बचपन से ही थे। स्कूली शिक्षा के समय भी आपने जाम्भोजी की प्रार्थना, महिमा गान तथा नशामुक्ति व पर्यावरण पर अनेक कविताएं रची, लेख भी लिखे जो समाज की पत्रिका ‘अमर ज्योति’, ‘सारंग तरंग’ आदि में प्रकाशित हुए। साथ ही बिश्नोई धर्म की स्थापना की पंचशती स्मारिका में भी श्री रामरतन द्वारा रचित कविता एवं लेख प्रकाशित हुए। इस प्रकार अपने सन् 1988 में स्नातकोतर उतीर्ण करके पत्रकारिता का कोर्स करके सम्पादन का कार्य प्रारम्भ किया। जैन समाज में पत्रकार के रूप में लाडनूं (राजस्थान) में नौकरी करने लगे। एक साप्ताहिक समाचार तथा एक मासिक पत्रिका के सम्पादन का कार्य करने लगे। तीन वर्षों तक जैन समाज में पत्रकार रहने के बाद बिश्नोई समाज में साहित्य लेखन और पत्रकारिता का व्यापक प्रचार करने के उद्देश्य से ‘बिश्नोई जगत’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन मार्च 1991 से प्रारम्भ किया। जो तीन वर्षों तक चलाया। उसके बाद भारत सरकार से उक्त पत्रिका के प्रकाशन की अनुमति व शीर्षक आवंटित हुआ। पंजीकृत शीर्षक ‘बिश्नोई सन्देश’ के नाम से हुआ तब से निरन्तर यानि सन् 1994 से ‘बिश्नोई सन्देश’ मासिक का प्रकाशन जारी है। कई प्रकार के उतार चढ़ाव सहन करते हुए आज इस पत्रिका ने 22 वर्षों का सफर तय किया है।
इसमें बिश्नोई समाज में धर्म प्रचार समाज विकास तथा राजनीति में बिश्नोई समाज की सक्रियता आदि के समाचार लेख कविता तथा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने की पठनीय सामग्री प्रकाशित की जा रही है। इस पत्रिका के ग्राहक एवं पाठक भारत के लगभग सभी राज्यों में है। डाक के द्वारा भेजी जाती है। समाचार व लेख भी डाक द्वारा प्राप्त किय जाते हैं। इसका प्रारम्भिक वार्षिक शुल्क 15 रूपये था। बाद में 20 रूपये, 30 रूपये उसके बाद 40 रूपये किया गया। सन् 2002 से 50 रूपये वार्षिक था। अब 100 रूपये वार्षिक है।
धर्मप्रचार के साथ ही पर्यावरण संरक्षण,जीवरक्षा और नशामुक्ति के प्रचार के समाचार, लेख व कतिाएं प्रमुखता से प्रकाशित किय जाते हैं। पत्रिका का स्वामीत्व श्री रामरतन बिश्नोई, एम.काॅॅम. साहित्यकार का है। आप ही इसके मुद्रक व सम्पादक हैं। नफा नुकसान का जिम्मा भी आपका ही है। साहित्य जगत की सेवा में संलग्न यह पत्रिका आज भी बिश्नोई धर्म के प्रति पूर्ण समर्पित है। साहित्य लेखन में श्री बिश्नोई ने जम्भेश्वर आदर्श साहित्य प्रकाशन के नाम से कई पुस्तक का प्रकाशन कर रहे हैं। स्वयं द्वारा लिखित जम्भेश्वर की अमर कहानी, महिमा रोटू धाम की, खेजड़ी भगत बुचाजी, लालासर धाम की महिमा, सबदवाणी, जम्भेश्वर भजनमाला, खेजड़ली बलिदान, जम्भ हरिजस साखी संग्रह, जाम्भाणी सबदार्थ, तिथि पत्रक तथा कलैण्डर आदि का प्रकाशन 22 वर्षों से जारी है। आप बिश्नोई मासिक पत्रिका से जुड़कर जाम्भाणी साहित्य जगत की सेवा कर सकते हैं।
साहित्य लेखन के साथ ही कवित्व के गुण आप में बचपन से ही थे। स्कूली शिक्षा के समय भी आपने जाम्भोजी की प्रार्थना, महिमा गान तथा नशामुक्ति व पर्यावरण पर अनेक कविताएं रची, लेख भी लिखे जो समाज की पत्रिका ‘अमर ज्योति’, ‘सारंग तरंग’ आदि में प्रकाशित हुए। साथ ही बिश्नोई धर्म की स्थापना की पंचशती स्मारिका में भी श्री रामरतन द्वारा रचित कविता एवं लेख प्रकाशित हुए। इस प्रकार अपने सन् 1988 में स्नातकोतर उतीर्ण करके पत्रकारिता का कोर्स करके सम्पादन का कार्य प्रारम्भ किया। जैन समाज में पत्रकार के रूप में लाडनूं (राजस्थान) में नौकरी करने लगे। एक साप्ताहिक समाचार तथा एक मासिक पत्रिका के सम्पादन का कार्य करने लगे। तीन वर्षों तक जैन समाज में पत्रकार रहने के बाद बिश्नोई समाज में साहित्य लेखन और पत्रकारिता का व्यापक प्रचार करने के उद्देश्य से ‘बिश्नोई जगत’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन मार्च 1991 से प्रारम्भ किया। जो तीन वर्षों तक चलाया। उसके बाद भारत सरकार से उक्त पत्रिका के प्रकाशन की अनुमति व शीर्षक आवंटित हुआ। पंजीकृत शीर्षक ‘बिश्नोई सन्देश’ के नाम से हुआ तब से निरन्तर यानि सन् 1994 से ‘बिश्नोई सन्देश’ मासिक का प्रकाशन जारी है। कई प्रकार के उतार चढ़ाव सहन करते हुए आज इस पत्रिका ने 22 वर्षों का सफर तय किया है।
इसमें बिश्नोई समाज में धर्म प्रचार समाज विकास तथा राजनीति में बिश्नोई समाज की सक्रियता आदि के समाचार लेख कविता तथा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने की पठनीय सामग्री प्रकाशित की जा रही है। इस पत्रिका के ग्राहक एवं पाठक भारत के लगभग सभी राज्यों में है। डाक के द्वारा भेजी जाती है। समाचार व लेख भी डाक द्वारा प्राप्त किय जाते हैं। इसका प्रारम्भिक वार्षिक शुल्क 15 रूपये था। बाद में 20 रूपये, 30 रूपये उसके बाद 40 रूपये किया गया। सन् 2002 से 50 रूपये वार्षिक था। अब 100 रूपये वार्षिक है।
धर्मप्रचार के साथ ही पर्यावरण संरक्षण,जीवरक्षा और नशामुक्ति के प्रचार के समाचार, लेख व कतिाएं प्रमुखता से प्रकाशित किय जाते हैं। पत्रिका का स्वामीत्व श्री रामरतन बिश्नोई, एम.काॅॅम. साहित्यकार का है। आप ही इसके मुद्रक व सम्पादक हैं। नफा नुकसान का जिम्मा भी आपका ही है। साहित्य जगत की सेवा में संलग्न यह पत्रिका आज भी बिश्नोई धर्म के प्रति पूर्ण समर्पित है। साहित्य लेखन में श्री बिश्नोई ने जम्भेश्वर आदर्श साहित्य प्रकाशन के नाम से कई पुस्तक का प्रकाशन कर रहे हैं। स्वयं द्वारा लिखित जम्भेश्वर की अमर कहानी, महिमा रोटू धाम की, खेजड़ी भगत बुचाजी, लालासर धाम की महिमा, सबदवाणी, जम्भेश्वर भजनमाला, खेजड़ली बलिदान, जम्भ हरिजस साखी संग्रह, जाम्भाणी सबदार्थ, तिथि पत्रक तथा कलैण्डर आदि का प्रकाशन 22 वर्षों से जारी है। आप बिश्नोई मासिक पत्रिका से जुड़कर जाम्भाणी साहित्य जगत की सेवा कर सकते हैं।